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 प्रश्न- मुस्लिम विधि/ समुदाय कि शाखाओं/ सम्प्रदायो की व्याख्या किजिये। पक्षकारो के सम्प्रदायो की विभिन्नता कि स्थिति मे किसकी विधि लागू होगी ?
Discuss sects and sub-sects of Muslim law.  Which law will be enforced in case of difference of sects of the parties?
पैगंबर मोहम्मद के देहांत के पश्चात तत्कालिक समस्या उनका उत्तराधिकारी प्राप्त करने की हुई। चुनाव द्वारा उत्तराधिकारी प्राप्त करने के पक्षधरों मे सबसे प्रमुख मोहम्मद साहब की छोटी पत्नी आयशा बेगम थी। तथा वंशानुगत मोहम्मद साहब का उतराधिकारी प्राप्त करने के पक्ष मे उनकी पुत्री फातिमा थी। इस प्रकार इस्लाम के दो संप्रदायों में विभाजन के मूल में, मात्र कारण ये था कि मोहम्मद सहाब का अधिकारी किस माध्यम से प्राप्त किया जाए, चुनाव द्वारा या वंश परंपरा द्वारा। बाद में इन दोनों संप्रदायों की विधियों में विभिन्नत्ता आ गई तथा मुस्लिम समुदाय दो प्रमुख शाखाओं सुन्नी तथा शिया समुदायों में विभक्त हो गया।
चुनाव द्वारा जो उनके खलीफा चुने गए वह अबू बकर थे। उनको खलीफा निर्वाचित किया गया यही इस्लाम धर्म का सुन्नी संप्रदाय कहलाया। तथा वंशानुगत जो अधिकारी चुना गया वह अली थे जो पैगंबर मोहम्मद के कुटुंब के ही थे। यह वर्ग शिया संप्रदाय कहलाया शिया संप्रदाय ने अपने प्रमुख को खलीफा ना कह कर इमाम कहा। इस प्रकार सुन्नी संप्रदाय के प्रमुख को खलीफा तथा शिया संप्रदाय के प्रमुख को इमाम कहा गया।  
बाद में तो इन दोनो समुदायों का भी विभाजन हुआ और ये विभिन्न उपसंप्रदायों में बट गये। सुन्नियों में कानून की चार में प्रमुख धाराये हो गई। इसी प्रकार शिया संप्रदाय भी विभिन्न संप्रदाय में विभाजित हो गया और इसमें भी अलग-अलग संप्रदायों की कानूनों की अपनी अलग विचारधारा बन गई। इस्लाम के संप्रदाय, उपसंप्रदाय तथा उनसे संबंधित मुस्लिम विधि के प्रमुख विचार धाराओं निम्न तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है-

1)     सुन्नी विचारधाराएं
मोहम्मद साहब के पश्चात अनेक विधिशास्त्रियों ने कुरान तथा सुन्नत के मूल पाठों के विशद न्यायिक विवेचना की और मुस्लिम विधि को समृद्ध बनाया। परंतु अनेक मुद्दों पर उनके मतों मे विभिनता आने के कारण उपसंप्रदायो का निर्माण हुआ। इस प्रकार सुन्नी विचारधारा चार मुख्य विचारधारा में विभाजित हो गई।

·         हनफी विचारधारा-   इस विचारधारा के संस्थापक अबू हनफी थे। वे अपने समय के उच्च कोटि के विद्वान थे और विलक्षण तार्किक बुद्धि तथा कानून के तकनीकी ज्ञान के कारण इनकी बड़ी ख्याति थी। अबू हनीफ ने कानून की प्रमाणित अप्रमाणित सभी परंपराओं को प्राप्त करने की बजाय कयास द्वारा सीधे कुरान के मूल पाठ से ही निगमित करने पर अधिक बल दिया। अबु हनीफ ने परंपराओं के अंधानुकरण की तुलना में कुरान पर आधारित वैज्ञानिक ढंग से लिए गए व्यक्तिगत निर्णय को वरीयता दी। इन्होने केवल उन परंपराओ को(सुन्ना) स्रोत माना जो परिक्षण द्वारा पूरी तरहा प्रमाणित हो चुकी थी। उनका कहना था कि कानून को सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तनशील होना चाहिए कुरान में उपलब्ध न होने पर “विधिशास्त्रियों के एकमत निर्णय” द्वारा भी कानून का प्रतिपादन किया जा सकता है।
हनफी विधि कि कुछ महत्वपूर्ण पुस्तके है- फतवा ए आलमगीरी,रद्द उल मुख्तार, दारुल मुख्तार तथा हैमिल्टन अनूदित अल हेदाया। भारत और पाकिस्तान मे रह्ने वाले अधिकांश मुस्लिम इसी सम्प्रदाय के है।

·         मलिकी विधि/ विचारधारा- 
सुन्नी सम्प्रदाय का यह स्कूल(विचारधारा) मलिक-इब्न-अनस द्वारा मदिना मे स्थापित किया गय। मलिक-इब्न-अनस परंपराओं के विशेषज्ञ के रूप मे विख्यात है। मलिकी स्कूल मे मुहम्मद साहब के अनुयायियों द्वारा वर्णित परम्पराओ के अलावा उन अनुयायियो के उत्तराधिकारियों द्वारा वर्णित परम्पराएं भी मान्य है। मलिकी स्कूल के अनुसार जहाँ तक सम्भव हो कानून केवल पैगम्बर कि परम्पराओं(सुन्न्त) द्वारा  ही प्राप्त किया जाना चाहिये। ऐसा सम्भव ना होने पर हि क्यास और इज़मा पर ध्यान देना चहिये। इन्होने कानून के निर्वचन के लिये एक नये तत्व इस्तिदलाल के प्रयोग किया जिसके अनुसार जनहित मे किसी एक वस्तु द्वारा दुसरी वस्तु के अनुमान के लिये किया जाता है। इसमे विवाहित स्त्री तथा उसकी सम्पत्ति सदैव उसके पति के नियंत्रण मे रह्ती है, वो पति कि सहमति कि बिना अपनी सम्पत्ति तक हस्तांतरित नही कर सक्ती। इसका विस्तार अफ्रिका, स्पेन, कुवैत, और बहरीन, जैसे देशो मे हुआ है। भारत मे इसके अनुयायि बहुत कम है। मलिकी स्कूल कि कुछ महत्वपूर्ण पुस्तके है- मलिक-इब्न-अनस कि किताब अल मूवत्त’, खलील इब्न अनस कि अल- मुख्तार

·         शफई विधि/ विचारधारा- 
सुन्नी सम्प्रदाय के शफई स्कूल(विचारधारा) के संस्थापक अल-शफी थे। जो मलिक-इब्न-अनस के शिष्य थे परंतु मलिक-इब्न-अनस की तुलना मे इनका अध्ययन कही अधिक अलोचनात्मक माना जाता है। अल-शफी ने सुन्ना का विश्लेषण विधिक तर्को के परिप्रेक्ष्य मे कुछ इस तरहा किया जिससे अत्यंत ही संतुलित तथा व्यवस्थित न्याय प्रणाली विक्सित हुई।  अल-शफी का विचार था कि कोइ भी समस्या ऐसी नही है जिसका समाधान कुरान या पैगम्बर की सुन्न्त मे ना हो। कयास का सबसे अधिक प्रयोग अल-शफी ने किय।
शफई स्कूल कि कुछ महत्वपूर्ण पुस्तके है-- अल-शफी की किताब-उल-उम्मा एवं रिसाला’, हज़र कि त्याफत- अल- मुहताज़’, गज़्ज़ाती की अल- वाजिजतथा राम्लीकि निहाजत- उअल- मुहताज़ प्रमुख है। काहिरा से इसका विस्तार हजाज, इंडोनेशिय,मलेशिय, दक्षिण- पूर्वी एशिया तथा मिस्र के दक्षिणी भाग तक है। भारत मे पश्चिमी तट मे रहने वाले कुछ मुस्लिम शफई स्कूल के है।

·         हनबली विधि/ विचारधारा-
सुन्नी सम्प्रदाय के इस स्कूल(विचारधारा) की स्थापना इब्न हनबल द्वारा हुई थी। ये विधिवेत्ता से अधिक परम्परावादी के रूप मे जाने जाते थे।परम्पराओ(सुन्नत्त) पर अधिक बल देने के कारण इब्न हनबल ने विधि के अन्य महत्वपूर्ण स्रोत इजमा तथा कयास की अवहेलना ही कर दी। इस विचारधारा मे व्यक्तिगत निर्णय तथा मानव तर्को की  कोई गुंजाइश नही थी। इसलिये इस स्कूल के सिधांत अत्यंत ही द्र्ढ, गैरसमझोतावादी और अव्यव्हारिक माने जाते है। इसकि कुछ महत्वपूर्ण पुस्तके है- मसनद-उल –इमाम, किताब-उल-मशख, किताब-उल-अलाल। इस सम्प्रदाय के कुछ मुस्लिम सऊदी अरब और कत्तार मे मिलते है अन्य स्थानो पर से लगभग नही के बराबर है।

2)     शिया विधि/ विचारधारा-
शिया सम्प्रदाय के तीन उपसम्प्रदाय मे बंट जाने का कारण मुख्यतः यह विवाद रहा है कि विभिन्न काल खण्डों मे इसका नेतृत्व किसके हाथ मे रहे।जहाँ तक कानून का प्रश्न है, इन उपसम्प्रदायो मे कोई विशेष अंतर नही है। शिया सम्प्रदाय के उपसम्प्रदायो का चित्रण निम्न रूप मे किया जा सकता है-



·         अथना-अशारिया (बारह (इमामो) को मानने वाले)विधि/ विचारधारा-
इस विचारधारा को इमामिया स्कूल भी कहते है। इस विचारधारा के अंतर्गत इमाम द्वारा कुछ भी कहा  गया कानून माना जाता है। इसमे मुता विवाहा मान्य है। अथना–अशारिया स्कूल का दो अन्य उपविचारधाराओ अखबरी तथा उसूली मे विभाजन हुआ। अखबरी द्वारा पैगम्बर की परम्पराओ (सुन्ना ) का बहुत कढाई से पालन करने के कारण अखबरी कट्टरपंथी कहलाते है। इसके विपरीत उसूली विद्वानो ने कुरान के मूलपठो की व्याख्या रोजमर्रा की समस्यायो की परिप्रेक्ष्य मे की है।
शराए-उल-इस्लाम अथना-अशारिया स्कूल की एक प्रमाणिक पुस्तक मानी जाती है। अथना-अशरिया मुस्लिम इरान, ईराक, लेबनान,पाकिस्तान तथा भारत मे पाये जाते है।

·         इस्माइलिया विधि/ विचारधारा-
इस विचारधारा के अनुयायी जफर सादिक के जेष्ठ पुत्र इस्माइल को सातवॉ इमाम मानने के कारण इस्माइलिया उपसम्प्रदाय के शिया कहलाये। इस स्कूल का दो अन्य उपविचारधाराओ खोजा तथा वोहरा मे विभाजन हुआ। खोजा तथा वोहरा अपने प्रारम्भिक काल से ही व्यपारी-समुदायो के रूप मे जाने जाते है। इस्मालिया मुस्लिम मध्य एशिया, सीरिया, भारतवर्ष तथा पाकिस्तान आदि देशो मे है। इसकी प्रमुख पुस्तक का नाम दयमुल-इस्लाम है।

·         जैदी विधि/ विचारधारा-
इस विचारधारा के जन्मदाता चौथे इमाम जैन-उल-आब्दीन के पुत्र जैद थे। शिया समुदाय से सर्वप्रथम जैद उपसम्प्रदाय ने ही प्रथक किया थ। इस सम्प्रदाय की एक विशेषतः ये है कि इसने सुन्नी सम्प्रदाय के कुछ सिद्धांतो को मन्यता दी है। फैजी का कहना है की जैदियो ने सुन्नी तथा शिया सम्प्रदायो के सिद्धांतो का एक रोचक सम्मिश्रण किया है। इस सम्प्रदाय के लोग अधिकांशतः यमन मे है भारत मे ये नही पाये जाते।

3)     मोताजिला विधि/ विचारधार-
इस विचारधारा के संस्थापक अत्ता-अल-गज्जाली थे। इस विचारधारा के अनुयायियो का मानना है कि कि प्रत्येक नियम का आधार केवल कुरान हो सकता है। अधिकांश परम्पराओ (सुन्ना ) को मोताजिल-मुस्लिमो ने अस्वीकार कर दिया है। इस विचारधारा का एक अतिविशिष्ट सिद्धांत एक- पत्नित्व का नियम है जिसे अन्य कोई सम्प्रदाय नही मानता है। दुसरी विशेषता ये है कि इसमे विवाह-विच्छेद के लिये काजी( न्यायाधिश )का निर्णय होना आवश्यक है। इस स्कूल मे तलाक द्वारा विवाहा विच्छेद नही हो सकता। मोताजिला सम्प्रदाय के मुस्लिम बहुत्त ही कम संख्या मे है।
पक्षकारो के सम्प्रदायो की विभिन्नता कि स्थिति मे लागू विधि-
अगर पक्षकार एक ही सम्प्रदाय के है तो उसी सम्प्रदाय की विधि लागू हो जाती है परतुं अगर पक्षकार अलग अलग सम्प्रदाय के है तो प्रतिवादी के उपसम्प्रदाय या स्कूल की विधि लागू होती है। उदाहरण के लिये अथना-अशारिया मुस्लिम पति, दाम्पत्य- अधिकारो की पुनर्स्थापना का वाद अपनी हनफी पत्नी के विरुद्ध दायर करे तो इस मामले हनफी-विधि लागू होगी। भारत मे हनफी सुन्नियो का बहुमत होने के कारण यदि विशेष रूप से यह न सि सिद्ध किया जाय कि पक्षकार शिया-सम्प्रदाय के है, तो सामान्य परिकल्पना यही रहेगी कि वे हनफी सुन्नी है और हनफी विधि लागू कर दी जायेगी।
Dr Nupur Goel
Associate  Professor
Shri ji institute of legal vocational education and research
( SILVER law collage )
Barkapur Bareilly
Email – nupuradv@gmail.com

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