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प्रश्न) मुस्लिम विधि के अंतर्गत उत्तराधिकार के सामान्य सिद्धांतो का वर्णन किजिये।
या
मुस्लिम विधि के अंतर्गत मृतक का निकट संबंधी मृतक के दूर के संबंधी के अधिकार को समाप्त कर देता है। विवेचना किजिये।
उत्तर)  मुस्लिम विधि के अंतर्गत उत्तराधिकार के सामान्य सिद्धांत
1)      दाय योग्य संपत्ति की प्रकृति Heritable property-  मृतक की संपदा में से अंत्येष्टि- संस्कार, उसके ऋणो का भुगतान तथा  वसीयतदारो को संपत्तियां प्रदान कर देने के पश्चात जो संपत्ति बची रहती है उसे दाय योग संपत्ति कहते हैं।  मुस्लिम विधि के अंतर्गत मृतक द्वारा छोड़ी गई चल- अचल, मूर्त- अमूर्त सभी प्रकार की संपत्ति दाय योग्य मानी जाती है। उत्तराधिकार के लिए मुस्लिम विधि के अंतर्गत संपत्ति की काय (corpus) तथा उसके लाभांश (usufruct) में कोई अंतर नहीं है दोनों दो दाय योग्य संपत्ति हैं।
शिया  विधि के अंतर्गत संतान विहीन विधवा मृतक पति की केवल चल संपत्तियों में से ही अपना निर्धारित हिस्सा प्राप्त करने की अधिकारी हैं।
2)      संयुक्त अथवा पैतृक संपत्ति Joint or Ancestral property-  मुस्लिम विधि में संयुक्त या पैतृक संपत्ति नहीं होती क्योंकि हिंदू विधि की सहदायिकी की संपत्ति की संकल्पना मुस्लिम विधि में नहीं है।
3)      जन्म स्वतववाद का सिद्धांत doctrine of Right by birth-  मुस्लिम विधि में जन्म स्वतववाद अर्थात जन्म से अधिकार का सिद्धांत मान्य नहीं है।
4)      प्रतिनिधित्व का सिद्धांत  Doctrine or Principle of Representation - प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के अनुसार मृतक की मृत्यु से पहले ही दिवंगत हो चुके पुत्र या पुत्री का पुत्र या पुत्री अपने दिवंगत पिता या माता का प्रतिनिधित्व करके मृतक की संपदा में जो हिस्सा उसके पिता या माता को मिलना चाहिए था उसे प्राप्त करने के अधिकारी माने जाते है। सामान्यतः यह सिद्धांत मुस्लिम विधि मे लागू नही होता है। इसका वर्णन हम दो बिंदुओं पर कर सकते है:-
a.      मृतक का निकट संबंधी मृतक के दूर के संबंधी के अधिकार को समाप्त कर देता है The nearer in degree excludes the remoter –
मुस्लिम विधि में प्रतिनिधित्व का सिद्धांत मान्य नहीं है इसलिए इस विधि प्रणाली में मृतक का निकट संबंधी मृतक के दूर के संबंधी के अधिकार को समाप्त कर देता है | रोमन, आंगल तथा हिंदू विधियों में  प्रतिनिधित्व का सिद्धांत उत्तराधिकार का बहुत महत्वूर्ण सिद्धांत है।  इस सिद्धांत के अनुसार मृतक की मृत्यु से पहले ही दिवंगत हो चुके पुत्र या पुत्री का पुत्र या पुत्री अपने दिवंगत पिता या माता का प्रतिनिधित्व करके मृतक की संपदा में जो हिस्सा उसके पिता या माता को मिलना चाहिए था उसे प्राप्त करने के अधिकारी माने जाते है।  दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के अनुसार मृतक के पुत्र का पुत्र अपने पिता का प्रतिनिधित्व करेगा यदि उसका पिता उत्तराधिकार का प्रश्न उठने से पहले ही दिवंगत हो चुका है। इसे हम निम्न रेखा चित्र के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं-
उदाहरण के लिए '' के दो पुत्र हैं  '' तथा ' '; ‘ के दो पुत्र है  तथा ’, ‘ के एक पुत्र है , ब की  मृत्यु क की मृत्यु से पहले हो जाती है।  ऐसे में यदि हम रोमन, आंग्ल तथा हिंदू विधि को  लागू करेंगे तो की प्रॉपर्टी के दो हिस्से होंगे एक में जाएगा दूसरा में परंतु क्योंकि की मृत्यु हो चुकी है अतः उसका हिस्सा में चला जाएगा प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के अनुसार।
परंतु क्योंकि मुस्लिम विधि में निकटवर्ती उत्तराधिकारी दूरवर्ती उत्तराधिकारी के अधिकार को समाप्त कर देता है अतः मुस्लिम विधि के अंतर्गत यहां सारी की सारी संपत्ति को मिल जाएगी को कुछ नहीं मिलेगा क्योकि जो कि (मृतक) का निकट का संबंधी है मृतक के दूर के संबंधी के अधिकार को समाप्त कर देगा।
दूसरे शब्दों में मुस्लिम विधि के अंतर्गत क्योंकि प्रतिनिधित्व का सिद्धांत नहीं लागू होता है इसलिए दिवंगत हो चुके पुत्र का पुत्र अपने चाचा या ताऊ की उपस्थिति में पितामह की संपत्तियों का उत्तराधिकारी नहीं बन सकता है।
मुस्लिम विधि में प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को लागू न किया जाना आधुनिक युग के मुस्लिम विधिशस्त्रियों की दृष्टि में उचित नहीं माना गया है । इजिप्ट, ट्यूनीशिया, तथा सीरिया आदी मुस्लिम राष्ट्रों ने प्रतिनिधित्व का सिद्धांत स्पष्टतः तो नहीं लागू किया परंतु ऐसी परिस्थितियों में पितामह द्वारा अपने दिवंगत पुत्र के पुत्र(पोते) के पक्ष में अनिवार्य वसीयत का नियम बनाकर इस सिद्धांत की अवहेलना के कारण उत्पन्न होने वाली दुखद स्थिति से उबरने का प्रयास अवश्य किया है।
b.      प्रति व्यक्ति या प्रति शाखा का विभाजन- Per capita or per strip division-  एक ही वर्ग के उत्तराधिकारीओं के बीच में उत्तराधिकार या तो एक-एक करके प्रति व्यक्ति के हिसाब से हो सकता है या उन शाखाओं के आधार पर जिसके वे सदस्य हैं अर्थात प्रति शाखा के हिसाब से हो सकता है।  प्रति व्यक्ति के अनुसार किए गए विभाजन में मृतक की संपदा उत्तराधिकारियों की संख्या के आधार पर विभाजित की जाती है अर्थात संपदा प्रत्येक उत्तराधिकारी में बराबर बराबर बांट दी जाती है।  परंतु प्रति शाखावार विभाजन में मृतक की संपदा उसके उत्तराधिकारियों की शाखाओं में बराबर बराबर विभाजित हो जाती है प्रत्येक उत्तराधिकारी अपना हिस्सा सीधे प्राप्त ना करके उस शाखा के माध्यम से प्राप्त करता है जिसका भी वो सदस्य रहता है। इस प्रकार शाखावार विभाजन के अंतर्गत यह आवश्यक नहीं है कि एक ही वर्ग के प्रत्येक उत्तराधिकारी को बराबर परिणाम में ही संपत्ति मिले। किसी उत्तराधिकारी विशेष की शाखा में उसके अतिरिक्त यदि कोई अन्य सदस्य न हो तो उस शाखा का पूरा हिस्सा उसे मिल जाएगा परंतु यदि कोई अन्य सदस्य हुआ तो उस सदस्य का हिस्सा कुछ कम हो जाएगा।
सुन्नी विधि के अंतर्गत एक ही वर्ग के उत्तराधिकारियों के बीच में संपदा का विभाजन प्रति व्यक्ति के नियम के अनुसार किया जाता है अतः सुन्नी विधि में मृतक का उत्तराधिकारी स्वयं अपना प्रतिनिधित्व करता है ना कि अपनी शाखा का जिसका वह सदस्य हैं।
शिया विधि के अंतर्गत एक ही वर्ग के उत्तराधिकारियों के बीच में संपदा का विभाजन शाखावार अर्थात प्रति शाखा के नियम के अनुसार किया जाता है दूसरे शब्दों में शिया विधि में उत्तराधिकारी स्वयं का प्रतिनिधित्व न करके अपनी उस शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके वह सदस्य होते है। इसे हम एक रेखाचित्र के माध्यम से समझ सकते है-



उपरोक्त चित्र मे '' के दो पुत्र हैं  '' तथा ' '; ‘ के दो पुत्र है  तथा ’, ‘ के एक पुत्र है ’, ‘ तथा की  मृत्यु की मृत्यु से पहले हो जाती है।
सुन्नी विधि के अंतर्गत एक ही वर्ग के उत्तराधिकारियों के बीच में संपदा का विभाजन प्रति व्यक्ति के नियम के अनुसार किया जाता है अतः उपरोक्त चित्र मे सुन्नी विधि में तथा सबका बराबर हिस्सा होगा।
परंतु शिया विधि के अंतर्गत एक ही वर्ग के उत्तराधिकारियों के बीच में संपदा का विभाजन शाखावार अर्थात प्रति शाखा के नियम के अनुसार किया जाता है अतः उपरोक्त चित्र मे कि सम्पत्ति के दो हिस्से किये जायेगे तथा के लिये फिर और के हिस्से मे से बराबर बराबर लेंगे(अर्थात कुल सम्पत्ति का 1/4 को 1/4  को ) तथा को का पूरा आधा हिस्सा मिल जायेगा।
इस प्रकार मुस्लिम विधि के अंतर्गत प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को बहुत ही सुक्ष्म रूप मे मन्यता दी गई है वो भी केवल शिया विधि के अंतर्गत्।
5)      उत्तराधिकार मे महिलाओ के अधिकार Female’s Right of Inheritance- अगर मृतक के उत्तराधिकारीयो में पुरुष तथा महिला दोनों ही हो तो मृतक की संपत्ति में अपना-अपना निर्धारित हिस्सा दोनों साथ साथ (simultaneously) ही प्राप्त करते हैं। परंतु किसी भी महिला उत्तराधिकारी का हिस्सा उसके समकक्ष पुरुष उत्तराधिकारी के हिस्से का आधा होता है। अर्थात महिला तथा पुरुष उत्तराधिकारी के अधिकार यदि समान हो तो भी उन्हें मिलने वाली संपदा की मात्रा (quantum) भिन्न-भिन्न होती है। मुस्लिम विधि में महिलाओं को पुरुष से आधी संपत्ति मिलने का नियम बनाया गया है।
6)      गर्भस्थ शिशु A Child in the Womb -  गर्भस्थ शिशु भी उत्तराधिकारी हो सकता है बशर्ते वह जीवित उत्पन्न हो। माता के गर्भ में स्थित शिशु भी विधिक व्यक्ति माना जाता है। इसलिए यदि मृतक की मृत्यु के समय कोई शिशु जो मृत्क का उत्तराधिकारी हो अपनी माता के गर्भ में स्थित हो चुका हो तो उसका अपना हिस्सा उसमें निहित हो जाता है। परंतु क्योंकि गर्भस्थ शिशु का हित एक समाश्रित हित है अतः यदि वह जीवित न उत्पन्न हो सका तो उसमें निहित हो चुका हिस्सा समाप्त मान लिया जाता है।
7)      जेष्ठाधिकार के सिद्धांत Doctrine of Primogeniture -  जेष्ठाधिकार उत्तराधिकार विधि का एक सिद्धांत है जिसके अनुसार मृतक के जेष्ठ पुत्र को मृतक की संपत्ति मे से कुछ अधिक अंश प्राप्त करने का अधिकार रहता है अर्थात अन्य उत्तराधिकारियों की तुलना में जेष्ठ पुत्र को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं। मुस्लिम विधि में जेष्ठाधिकार का नियम नहीं लागू किया जाता है इसलिये जेष्ठ हो या कनिष्ठ प्रत्येक पुत्र का हिस्सा बराबर-बराबर रहता है।
परंतु शिया विधि के अंतर्गत मृतक की तलवार, अंगूठी, कुरान तथा वस्त्रों का एकमात्र उत्तराधिकारी उसका जेष्ठ पुत्र ही होता है। इन सारी वस्तुओं के अतिरिक्त जेष्ठ पुत्र को मृतक की अन्य संपत्तियों में बंटवारे में कोई प्राथमिकता नहीं दी जाती।
8)      दो परस्पर उत्तराधिकारीयों की एक साथ मृत्यु Simultaneous Death of Two Heirs-  मुस्लिम उत्तराधिकार विधि के अंतर्गत यदि दो या अधिक परस्पर उत्तराधिकारीयो की मृत्यु एक साथ किसी दुर्घट्ना(common calamity) मे हो जाए और इसमें यह पता करना नामुमकिन हो कि पहले मृत्यु किसकी हुई है, तो कोई भी किसी दूसरे का उत्तराधिकारी नहीं माना जाता है। इसलिए मान लिया जाता है कि उत्तराधिकारी के रूप में इनका अस्तित्व ही नहीं रहा हो और इन्हें सम्मिलित किए बगैर ही उत्तराधिकार प्रभावी कर दिया जाता है। 
उदाहरण के लिए और जो परस्पर एक दूसरे के उतराधिकारी हैं किसी वायुयान दुर्घटना में इस प्रकार मर जाते हैं कि है पता नहीं लग पाता कि किसकी मृत्यु पहले हुई। ऐसे में मुस्लिम विधि के अंतर्गत परस्पर एक-दूसरे के उत्तराधिकारी होते हुए भी न तो की संपत्ति प्राप्त करेगा ना को की संपत्ति मिलेगी, फलस्वरुप के अन्य उत्तराधिकारी की संपत्ति इस प्रकार से प्राप्त करेंगे जैसे कि कभी राह ही ना हो, तथा के उत्तराधिकारी भी का अस्तित्व ना मानते हुए की संपत्तियां प्राप्त कर लेंगे।
परंतु आंगल तथा हिंदू विधियों में दो परस्पर उत्तराधिकारियों की मृत्यु एक साथ होने पर कानून यह मान लेता है कि जिसकी उम्र अधिक थी वह पहले मरा जिस व्यक्ति की उम्र कम थी उसका देहांत बाद में हुआ।
9)      सौतेली संताने Step Children - सौतेली संताने अपने सौतेले माता-पिता की संपदा की उत्तराधिकारी नहीं होती हैं , इसी प्रकार सौतेले माता पिता भी अपनी सौतेली संतानों की संपदा को उत्तराधिकारी द्वारा प्राप्त नहीं कर सकते । सौतेली संताने अपने सगे माता-पिता की संपत्तियों की उत्तराधिकारी हो सकती हैं। माता-पिता भी केवल सगी संतानों के उत्तराधिकारी होते हैं।
10)  लापता व्यक्ति (Missing Propositus) - यदि कोई व्यक्ति 7 वर्ष तक लापता हो तो कानून उसे मृतक मान लेता है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 108 के अनुसार कोई व्यक्ति यदि 7 वर्ष तक लगातार लापता रहा हो और वे लोग भी जिन्हें उसकी जानकारी हो सकती है उस व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी न दे पाए तो उस व्यक्ति के देहांत की विधिक प्रकल्पना कर ली जाती है। परिणामतः किसी व्यक्ति के 7 वर्ष तक लगातार लापता होने पर उसे मृत मानकर उसकी संपत्ति का उत्तराधिकार प्रारंभ कर दिया जाता है।
11)  लापता उत्तराधिकारी (Missingheir)- अगर कोइ उत्तराधिकारी मृतक का उत्तराधिकार खुलने के वक़्त लापता हो तो उसका हिस्सा अलग रख दिया जाता है जब तक कि वो वापस न आ जाये या उसको कानूनन मृत घोषित न कर दिया जाये। अगर वह जीवित वापस नही आता है और उसको मृत घोषित कर दिया जाता है तो उसका ( लापता व्यक्ति ) हिस्सा मृतक के वापस चला जायेगा। वह लापता उत्तराधिकारी मे नही जायेगा।
12)  राजगामित्व (Escheat) -  यदि किसी मुस्लिम मृतक का कोई भी विधिक उत्तराधिकारी ना हो तो उसकी संपत्ति  राजगामित्व के नियम के अनुसार सरकार द्वारा जब्त कर ली जाती हैं। प्रत्येक मृतक की अंतिम उत्तराधिकारी सरकार होती है।
13)  स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के अंतर्गत संपन्न विवाह Marriage Under the  Special Marriage Act 1954-  यदि किसी मुस्लिम ने अपना विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के अंतर्गत अर्थात कोर्ट मैरिज के द्वारा संपन्न किया हो तो उसकी संपत्तियों का उत्तराधिकार इंडियन सकसेशन एक्ट 1925 के उपबांधो के अंतर्गत होता है। ऐसी दशा में मुस्लिम विधि के उत्तराधिकार के नियम लागू नहीं होते हैं।
Dr Nupur Goel
Associate Professor
Shri ji institute of legal vocational education and research
( SILVER law collage )
Barkapur Bareilly
Email – nupuradv@gmail.com

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