#Muslim_Law #DrNupurGoel #मुस्लिम_विधि_के_अंतर्गत_उत्तराधिकार_से_अपवर्जन_के_नियम #rules_of_exclusion_of_a_heir_under_Muslim_Law_in_Hindi


प्रश्न) मुस्लिम उत्तराधिकार विधि के अंतर्गत उत्तराधिकार से अपवर्जन के नियमो का वर्णन किजिये।
उत्तर) मृतक का प्रत्येक उत्तराधिकारी उसकी संपदा को अपने निर्धारित अंशो में प्राप्त करने का अधिकारी है बशर्ते अपवर्जन के नियमों के अंतर्गत उसे उत्तराधिकार से वंचित न कर दिया गया हो । कुछ परिस्थितियों में मुसलमान व्यक्ति अपने पूर्वजों की संपत्ति पर उत्तराधिकार प्राप्त करने के अयोग्य मान लिए जाते हैं जैसे हत्या, धर्म परिवर्तन आदी। परन्तु पागलपन, चरित्रहीनता अथवा शारीरिक दोष उत्तराधिकार के लिए कोई अयोग्यता नहीं मानी जाती हैं और इस आधार पर किसी व्यक्ति को उत्तराधिकार से वंचित भी नहीं किया जा सकता है। मुस्लिम विधि के अंतर्गत उत्तराधिकारियों को अपवर्जित तथा मृतक की संपदा से उन्हें वंचित किए जाने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियां है -
1.      दासता Slavery
2.      मानव हत्या Homicide
3.      इस्लाम धर्म का त्याग conversion to another religion
4.      अधर्मजता Illegitimacy
5.      स्थानीय प्रथा या अधिनियम के अंतर्गत पुत्रियों का अपवर्जन Exclusion of Daughters under Custom or Statute.




1)      दासता(slavery)- एक  दास को उत्तराधिकार द्वारा संपत्ति प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं था। उदाहरणार्थ यदि किसी मुसलमान के दो पुत्र हैं और उनमें से एक तो स्वतंत्र हो तथा दूसरा दास हो तो पिता की मृत्यु पर स्वतंत्र पुत्र को उसके पिता की समस्त संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होगा तथा दूसरे दास पुत्र को संपत्ति नही मिलेगी। क्योंकि भारत में दास प्रथा 1943 में भौतिक रूप से समाप्त कर दी गई है  इस कारण दासता के आधार पर उत्तराधिकार से वंचित होने की बात महत्वहीन हो गई है। यह विषय अब केवल पुस्तकों में ही रह गया है और अध्यापन को छोड़कर अब इसका कोई महत्व शेष नहीं है।
2)      मानव हत्या (Homicide) - हनफी विधि के अनुसार यदि कोई व्यक्ति, मृतक व्यक्ति जिसका उत्तराधिकार देखा जा रहा है की, हत्या करता है चाहे वे हत्या जानबूझकर की हो अथवा अनजाने में हो गई हो, मृतक की संपदा का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता। परंतु शिया विधि के अंतर्गत हत्या करने वाला मृतक की संपत्ति को उत्तराधिकार द्वारा प्राप्त करने के अधिकार से केवल तब ही वंचित किया जाता है जबकि उसने हत्या जानबूझकर की हो अर्थात अनजाने में की गई हत्या के लिए उसको उत्तराधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
3)      इस्लाम धर्म का त्याग- Caste Disabilities Removal Act, 1850 के पारित होने से पहले यदि कोई मुसलमान व्यक्ति अपना धर्म त्याग कर कोई अन्य धर्म ग्रहण कर कर लेता था तो वह अपने उत्तराधिकार संबंधित अधिकार को खो देता था परंतु इस एक्ट के पारित होने के बाद से अब यह यह नियम भारत में लागू नहीं होता है। अतः अब केवल इस्लाम धर्म त्याग देने मात्र से ही कोई व्यक्ति अपने उत्तराधिकार संबंधी अधिकारों से वंचित नहीं हो जाता है।  धर्म त्याग के आधार पर किसी उत्तराधिकारी को मृतक की संपदा के उत्तराधिकार से अपवर्जित नहीं किया जा सकता है। परंतु यदि मृतक धर्म परिवर्तन कर के हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो जाए तो उसके देहांत के पश्चात उसकी संपदा का उत्तराधिकार हिंदू विधि से विनियमित होगा न कि मुस्लिम विधि द्वारा।
4)      अधर्मजता (illegitimacy)- शिया विधि के अनुसार अवैध संतान न तो अपने पिता की और न अपनी माता की संपत्ति की उत्तराधिकारी होती है। न ही माता-पिता अपनी अवैध संतान की संपत्ति के उत्तराधिकारी होते हैं। दूसरे शब्दों में शिया विधि के अनुसार संतान की अवैधता उत्तराधिकार के लिए अवरोध है। सुन्नी विधि के अंतर्गत अवैध संतान अपने पिता की संपत्ति में  उत्तराधिकार किसी भी हालात में प्राप्त नहीं कर सकती परंतु वह अपनी माता की संपदा की उत्तराधिकारी  होती है। अवैध संतान केवल अपनी माता ही नहीं बल्कि माता के माध्यम से संबंधित अन्य संबंधियों की संपत्तियों पर भी उत्तराधिकार प्राप्त कर सकती है।
वफातुन बनाम विलायत खानम 1903 कोलकाता के वाद में एक सुन्नी महिला अपने पीछे अपना पति तथा अपनी बहन के अवैध पुत्र को छोड़कर दिवंगत हुई । पति ने अपना निर्धारित हिस्सा 1/2 उत्तराधिकार में प्राप्त कर लिया तथा शेष 1/2 संपदा को मृतक की बहन के अधर्मज पुत्र ने प्राप्त किया जो कि मृतक का एकमात्र दूरवर्ती संबंधित था जिस पर पति द्वारा विरोध किया गया। निर्णय देते हुए न्यायालय ने घोषित किया कि सुन्नी विधि में अधर्मज संतान को केवल माता ही नहीं वरन माता के अन्य संबंधियों की संपत्तियों को भी उत्तराधिकार में प्राप्त करने का अधिकार है तथा मृतक की बहन का अधर्मज पुत्र मृतक का उत्तराधिकारी माना गया।
5)      स्थानीय प्रथा या अधिनियम के अंतर्गत पुत्रियों का अपवर्जन Exclusion of Daughters under Custom or Statute- कहीं-कहीं स्थानीय प्रथाओं अथवा स्थानीय अधिनियम के अंतर्गत मृतक की पुत्रियां उसकी संपदा के उत्तराधिकार में हिस्सा नहीं ले सकती। उदाहरण के लिए कश्मीर के गुर्जरों तथा बक्कर वालों की स्थानीय प्रथा के अनुसार पितामह के किसी भी पुरुष वंशजों की उपस्थिति में पुत्रियां उत्तराधिकार से वंचित हो जाती हैं। इसी प्रकार मुंबई में प्रभावी वतन एक्ट 1886 के अंतर्गत चाचा की उपस्थिति में पुत्रिया  उत्तराधिकार से वंचित हो जाती हैं।

Dr Nupur Goel
Associate Professor
Shri ji institute of legal vocational education and research
( SILVER law collage )
Barkapur Bareilly
Email – nupuradv@gmail.com

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