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पूर्व  क्रयाधिकार के लिए औपचारिकताएं या तीन तलब-
मुस्लिम विधि के अंतर्गत पूर्व  क्रयाधिकार के दावे को प्रभावी करने के लिए कुछ आवश्यक औपचारिकताएं निर्धारित है जिन्हे तीन तलब भी कहा जाता है संपत्ति का बैनामा पूर्ण होने पर पूर्वक्रयाधिकार के दावे को प्रभावी कराने के लिए निर्धारित औपचारिकताओं में तीन तलाक अथवा मांगे आती हैं जिन्हें क्रमश एक के बाद एक मांग के रूप में प्रस्तुत करना होता है।ये तीन मांगे निम्न है –
1)     प्रथम मांग या  तलब ए मोवसिबत- पूर्वक्रयाधिकार के दावे को प्रभावी कराने के लिए प्रथम मांग प्रारंभिक कार्यवाही है। प्रथम मांग पूर्व क्रयाधिकारी कि वह प्रथम घोषणा है जिसके द्वारा वह पूर्व क्रयाधिकार को प्रभावित करने के अपना मंतव्य अविलंब स्पष्ट करता है।इसकी कुछ महत्वपुर्ण बिंदु निम्न है-
a.       प्रथम मांग विक्रय पूर्ण हो जाने के पश्चात ही प्रस्तुत की जानी चाहिए। रजिस्ट्री से पूर्व विक्रय पूर्ण नहीं माना जाता। (परंतु कुछ विधिशास्त्रियों का मत है कि पूर्व क्रयाधिकार का दावा विक्रय पूर्ण होने से पूर्व ही किया जा सकता है, जब विक्रय पूर्ण हो जाता है तो पूर्व क्रयाधिकार समाप्त हो जाता है। रजिस्ट्री हो जाते ही विक्रय पुर्ण माना जाता है अतः इसके पश्चात शुफा का दावा नहीं किया जा सकता।)
b.       इस सूचना के मिलते ही कि संबंधित सम्पत्ति बिक चुकी है अर्थात रजिस्ट्रार के कार्यालय में विक्रय पूर्ण हो जाने को प्रमाणित किए जाने की सूचना मिल जाने पर प्रथम मांग या  तलब ए मोवसिबत तुरंत प्रस्तुत कर देनी चाहिए। क्योंकि मोवासिबत का शाब्दिक अर्थ है उछल जाना। प्रथम मांग प्रस्तुत किए जाने मे जरा सी भी देरी इस मांग को निष्प्रभावी बनाकर इस अधिकार को समाप्त कर देती हैं।
c.        पूर्व क्रयाधिकारी प्रथम मांग की घोषणा स्वयं भी कर सकता है और इसके लिए किसी अन्य व्यक्ति को प्राधिकृत भी कर सकता है।
d.        प्रथम मांग या  तलब ए मोवसिबत को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि इस बात का पता चल सके की पूर्व क्रयाधिकारी अपने दावे को वास्तव में प्रभावी करना चाहता है।
e.        प्रथम मांग या  तलब ए मोवसिबत लिखित तथा मौखिक दोनों प्रकार से प्रस्तुत की जा सकती हैं। इसे पत्र के माध्यम से भी व्यक्त किया जा सकता है।
f.        मुस्लिम विधि के अंतर्गत गवाहों की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है परंतु इस बात को प्रमाणित करने के लिए की प्रथम मांग समय पर प्रस्तुत की जा चुकी है, इसका कुछ ना कुछ साक्ष्य अवश्य होना चाहिए।
2)     द्वितीय मांग या तलब ए इशहाद- पूर्व क्रयाधिकार के दावे को प्रभावी कराने के लिए प्रथम मांग के पश्चात द्वितीय मांग या तलब ए इशहाद का प्रस्तुत किया जाना भी अनिवार्य है। द्वितीय मांग पर वस्तुतः प्रथम घोषणा की पुनराव्रत्ति है।  अव्यस्क की ओर से द्वितीय मांग उसके संरक्षक द्वारा प्रस्तुत की जाती है। द्वितीय मांग से संबंधित मुस्लिम विधि के नियम निम्नलिखित हैं-
a.       प्रथम मांग के बाद शीघ्र अतिशीघ्र द्वितीय मांग प्रस्तुत की जानी चाहिए। प्रथम मांग तथा द्वितीय मांग के बीच अंतराल होने पर द्वितीय मांग निष्प्रभावी हो जाती है।
b.       द्वितीय मांग में इस बात का उल्लेख अवश्य होना चाहिए कि प्रथम मानव अमुक तिथि को पहले ही पेश की जा चुकी है।
c.       पूर्व क्रयाधिकारी एक से अधिक हो तो द्वितीय मांग उनमें से प्रत्येक के द्वारा पेश होने चाहिए। पूर्व क्रयाधिकार के दावेदार यदि एक से अधिक हो परंतु उनमें से केवल एक ही पूर्व क्रयाधिकारी द्वारा द्वितीय मांग पेश की गई है तो केवल इस पूर्व क्रयाधिकारी का दावा ही प्रभावी होगा अन्य दावेदार को पूर्व क्रयाधिकार का अधिकार नहीं मिल सकेगा।
d.       द्वितीय मांग क्रेता तथा विक्रेता किसी एक को संबोधित करके पेश की जानी चाहिए। क्रेता यदि एक से अधिक हो तो उनमें से प्रत्येक को संबोधित किया जाना चाहिए अन्यथा जो क्रेता द्वितीय मांग मे संबोधित नहीं है उसके विरुद्ध पूर्व क्रयाधिकार प्रभावित नहीं होगा। परंतु यदि द्वितीय मांग विक्रेता अथवा संपत्ति को संबोधित करके पेश की गई है, तो इससे सभी क्रेता अपने आप बाध्य हो जाते हैं।
e.       दित्य मांग प्रस्तुत करते समय दो सक्षम गवाहों की उपस्थिति अनिवार्य है।
f.        द्वितीय मांग पेश करते समय ही संपत्ति के मूल्य का भुगतान आवश्यक नहीं है। परंतु क्रेता से संपत्ति पुनः क्रय करने के लिए इसका मूल्य अदा करने की तत्परता पूर्व क्रयाधिकारी में अवश्य होनी चाहिए।
कभी-कभी प्रथम मांग तक द्वितीय मांग एक साथ ही प्रस्तुत हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट होना चाहिए कि दोनों मांगे पेश की जा चुकी है।

3)     तृतिय मांग या तलब ए तमलीक- तीसरी मांग की औपचारिकता प्रत्येक मामले में आवश्यक नहीं होती। यदि द्वितीय मांग के बाद क्रेता पूर्व क्रयाधिकारी के दावे को स्वीकार कर दे तो पूर्व क्रयाधिकारी को विधिक कार्यवाही नही करनी पड़ती है। परंतु द्वितीय मांग के बाद भी क्रेता यदि पूर्व क्रयाधिकारी के दावे को अस्वीकार कर दे तो पूर्व क्रयाधिकारी को विधिक कार्यवाही द्वारा इसे प्राप्त करना पड़ता है। तृतिय मांग या तलब ए तमलीक के रूप में प्रस्तुत किए गए वाद के प्रमुख लक्षण निम्न है-
a.       विक्रय पूर्ण होने की तिथि से 1 वर्ष के अंदर ही वाद प्रस्तुत हो जाना चाहिए।
b.       सामान्यतः वाद क्रेता के विरुध प्रस्तुत किया जाता है, परंतु संपत्ति यदि विक्रेता के ही कब्जे में हो तो क्रेता तथा विक्रेता दोनों ही प्रतिवादी बनते हैं। पूर्व क्रयाधिकारी यदि आव्यस्क है तो उसकी ओर से उसका संरक्षक वाद प्रस्तुत करने के लिये सक्षम है।
c.       पूर्व क्रयाधिकारी का दावा बिकी हुई संपत्ति के संपूर्ण भाग पर होना चाहिए, संपत्ति के केवल एक भाग का दावा करने तथा शेष को छोड़ देने पर वाद खारिज हो जाएगा और पूर्व क्रयाधिकार समाप्त हो जाएगा।
d.       जब दो या दो से अधिक व्यक्ति पूर्व क्रयाधिकार का दावा करते हैं तो प्रत्येक को मांग करना जरूरी है, जब तक कि अन्य पूर्व क्रयाधिकारीओं द्वारा किसी एक को पूर्व क्रयाधिकार का दावा करने की अनुमति ना दे दी जाए कि वह उनकी तरफ से भी शुफा की मांग करें।
 for rest of the material related to preemption go to the link 
Dr Nupur Goel
Assistant Professor
Shri ji institute of legal vocational education and research
( SILVER law collage )
Barkapur Bareilly
Email – nupuradv@gmail.com

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