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प्रश्न) वक़्फ कितने प्रकार का होता है? वक़्फ अलल औलाद कि विस्त्रित विवेचना किजिये।
उत्तर) मुस्लिम विधि के अंतर्गत वक् का वर्गीकरण दो किस्मों में किया गया है, लोक वक् एवं निजी या प्राइवेट वक्फ।

1)    लोक वक्फ:- सार्वजनिक वक् धार्मिक या खैरात के प्रयोजनों के लिए होता है लोक वक् अपने निजी परिवार के लाभ के लिए उत्पन्न नहीं किया जा सकता, यह धार्मिक एवं खैराती प्रयोजनों के लिए होता है
2)    निजी वक्फ या वक् अलल औलाद :- यह वक् संस्थापक के निजी खानदान और वंशजों के लिए होता है वास्तविक रूप से अजन्मे वंशजों के पक्ष में वक् होता है, इसी को वक् अलल औलाद कहते हैं पैगंबर साहब ने एक बार कहा था
यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार या संबंधियों के लिए इस आशय से संपत्ति समर्पित करता है कि, अगले जन्म में उसे इसका प्रतिफल मिलेगा तो यह खैरात है यद्यपि उसने गरीबों को कुछ न देकर अपने परिवार एवं बच्चों को ही खैरा दिया है
      पैगंबर साहब के अनुसार निर्धनों के कल्याण के लिए संपत्ति देने की अपेक्षा यह अधिक खैराती कार्य है वक़्फ विधिमान्यकरण अधिनियम 1913 से पहले वक् अलल औलाद को स्रजित करने के लिए यह आवश्यक था कि वक् में खैरात के लिए भी उपबंध किया जाए शाश्वत रूप से संस्थापक के परिवार एवं अपत्य और वंशजो के ही लाभ के लिए किया गया वक्फ शून्य माना जाता था तथा संस्थापक के परिवार, बच्चों तथा वंशजों के लाभ के लिए वक् भी वैध माना जाता था जबकि उसमे खैरात के लिए संपत्ति का सारपूर्ण समर्पण किया गया हो यदि वक् का मुख्य उद्देश्य परिवार की तरक्की रहता था और खैरात के लिए दान नाममत्र को रहता था तो ऐसी दशा में ऐसा वक् शून्य माना जाता था
      मोहम्मद हसन उल्ला बनाम अमर चंद्र कुंदू (1849)17 कोलकाता 498 के बाद में, दस्तावेज में यह प्रावधान था कि संस्थापक के परिवार के सदस्य वक् संपत्ति की पूर्ण आए पर नियंत्रण रखेंगे और वह मुतवाल्ली के रूप में धर्मिक प्रयोजनों के लिए आ का बहुत मामूली भाग खर्च करेंगे और आय को अपनी मर्जी के अनुसार जितना भी चाहे अपने और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए ले सकेंगे न्यायालय ने निर्णित किया कि धार्मिक प्रयोजनों के लिए दान भ्रामक था, वक् का मुख्य उद्देश्य वक्र्ता के परिवार के सदस्यों की पीढ़ी दर पीढ़ी उन्नत बनाना था अत: वक्फ शून्य था
      अब्दुल ता मोहम्मद बनाम रासमय चौधरी 30(1894)22 आई0 ए0 के बाद में प्रिवी काउनसिल ने अवलोकन किया था कि जब वक् का मुख्य उद्देश्य खानदान की तरक्की हो और खैरात के लिए दान अति अल्प राशि या अनिश्चितता और दूरस्थता के कारण दिखावटी हो तो वक्फ अमान्य है और यह प्रभाव में नहीं लाया जा सकता है।
      1913 के अधिनियम कि धारा 3(अ) द्वारा इसके अंतर्गत अब यह परिवर्तन कर दिया गया है कि कोई मुसलमान अपनी संपत्ति का वक् अपने खानदान, बच्चों, वंशजों के भरण पोषण के वास्ते कर सकता है बशर्ते की वह उपबंध कर दे कि अंत में लाभांश एक स्थाई प्रकृति के खैराती उद्देश्य को पहुंचेगा उसे अब यह स्वतंत्रता है की खैरात के लाभ का प्रदान उस समय तक के लिए स्थगित रखें जब तक कि उसके खानदानी वंशजो का असाना हो जाए
      किसी हनफी मुसलमान के संबंध में मुसलमान वक् मान्यकारी अधिनियम 1913 की धारा 3(ब) यह उपबंधित करती है कि जहां वक् का निर्माणकर्ता एक हनफी मुसलमान हैं वह अपने जीवन काल तक अपने भरण पोषण के लिए या अपने ऋणो के भुगतान के लिए संपत्ति की आ आरक्षित कर सकता हैं
      परंतु दोनो ही स्थिति मे यह आवश्यक है की अंतिम लाभ अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से गरीबों के लिए या किसी अन्य प्रयोजन के लिए जो स्थाई प्रकृति का धार्मिक पूर्त खैराती प्रयोजन हो आरक्षित किया गया हो। इस प्रकार यदि अंतिम लाभ धार्मिक पूर्त या खैराती प्रयोजन के लिये आरक्षित किया गया हो तो धारा 4 यह उपबंध करती है कि ऐसे वक़्फ केवल इस कारण शुन्य नही होगा कि उसका धार्मिक पूर्त या खैराती प्रयोजन दूरस्थ है।
Dr Nupur Goel
Assistant Professor
Shri ji institute of legal vocational education and research
( SILVER law collage )
Barkapur Bareilly
Email – nupuradv@gmail.com

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